आजकल के जीवन मे खाँसी की समस्या एक आम समस्या हो गई है। जरासा मौसम ने रुख नही बदला की सर्दी, खाँसी इंसान को जकड़ लेती है। इसका मुख्य कारण प्रतिकारक्षमता ( immunity ) का कम होना भी है। सर्दी खाँसी को जड़ से मिटाने के लिए आयुर्वेद से बेहतर कोई नही है। एलोपैथी में भी सर्दी खाँसी का इलाज होता है, पर ज्यादातर उन दवाइयों से सर्दी को दबा दिया जाता है, सर्दी जड़ से नही मिटती और दवाई का कोर्स पूरा होने पर कई बार फिर से हो जाती है।
आयुर्वेद में ऐसी कई औषधि जड़ीबूटियाँ है, जो सर्दी खाँसी को जड़ से मिटाने की, उसे पुनः आने से रोकने की साथ ही प्रतिकरक्षमता बढ़ाने की क्षमता रखती है। उनमेंसे ही एक औषधि का नाम है, वासा। आयुर्वेदिक औषधि वासा का परिचय, फायदे, उपयोग और घरेलु नुस्खों की जानकारी नीचे दी गयी हैं :
वासा का उपयोग, फायदे और घरेलु नुस्खे
वासा का परिचय
- नाम : वासा को संस्कृत में वासक, आठरुष, हिंदी में वासा, अडूसा, मराठी में अडूलसा, बंगाली में वसाका, लैटिन में Adhatoda vasica के अलावा अंग्रेजी में मालाबार ट्री के नाम से भी जाना जाता है। वासा के कुछ पर्यायवाची आयुर्वेदिक नाम भी है, जैसे की :
- वासा :- यह श्वास, अस्थमा आदि रोगों को दबा देता है।
- वासिका :- श्वासादी रोगों को दूर करने के लिए वैद्य लोग इसका प्रयोग करते हैं।
- सिंहास्य :- इसके फूलों का आकार सिंह के मुख जैसा होता हैं।
- सिंही :- यह रोगों का संहार करता हैं।
- वैद्यमाता :- रोगों को जीतनेवाला होने के कारण वैद्यों के लिए माता के समान है।
- स्वरुप : इसका सदाहरित झाड़ीदार क्षुप ( shrub ) 3 – 8 ft ऊंचा, तेज़ गंधयुक्त, प्रायः समूहबद्ध होता है। इसके पत्र अमरूद के पत्तो की तरह 5 – 8 इंच लंबे, 1.5 से 2.5 इंच चौड़े, भालाकार या अण्डाकार, दोनों सिरों पर नुकीले, सूक्ष्म मृदु रोमयुक्त होते है। अडूलसा के पत्तों को कपड़ों और किताबों में रखने से कीड़ा नही लगता है।
- पुष्प : वासा के पुष्प श्वेत वर्ण के होते है। वसन्त ऋतु में साल में एक बार वासा में पुष्प खिलते है। जिस तरह गुलाब के फूल का गुलकंद बनाते है, वैसे वासा के फूलों का भी गुलकंद बना सकते है।
- प्रकार : वासा के 2 प्रकार होते है श्वेतवासा और कृष्णवासा।
- उत्पत्ति स्थान : वासा भारत मे सर्वत्र पाया जाता है।
- गुणकर्म : वासा स्वाद में कड़वा, कषैला तथा गुणों में लघु, रुक्ष, शीत होता है। आयुर्वेदानुसार वासा कफपित्तनाशक, हृद्य (good for heart), स्वर्य (आवाज को सुधारने वाला ), श्वास – कास, ज्वर, रक्तपित्त, क्षय (TB), मेह (diabetes), कुष्ठ (Leprosy) , तृषा (प्यास) का नाश करनेवाला माना गया है। आयुर्वेद में इस श्लोक द्वारा वासा का वर्णन किया गया है,
- आधुनिक विज्ञान के अनुसार वासा के गुणकर्म : आधुनिक विज्ञान के अनुसार वासा में vasicine नामक alkaloid, vascinol, और उड़नशील तेल (volatile oil) होते है। वासा में प्रचुर मात्रा में पोटैशियम नाइट्रेट लवण पाए जाते है। आधुनिक विज्ञान में वासा के Expectorant, Broncho dilator, Oxytocic आदि कर्म बताए गए है।
- वासा का उपयुक्त अंग : पंचांग। वासा के पत्र, छाल, फूल, फल, मूल आदि सभी उपयुक्त होते है।
- वासा की ग्रन्थोक्त औषधि : वासापुटपाक स्वरस
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वासा / अडूसा के उपयोग व घरेलू नुस्खे Adulsa uses and remedies in Hindi
- कफ रोग : आयुर्वेद में प्रायः जो कफशामक बीमारियां होती है, उनमें वासा का प्रयोग किया जाता है।
- च्यवनप्राश : च्यवनप्राश में भी वासा का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह भी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। वासा की योग्य मात्रा डालने से ही च्यवनप्राश उत्तम बनता है।
- फेफड़ों के लिए अमृत वासा : वासा मुख्यतः फेफड़ों के लिए अमृत माना गया है। जीवाणुरोधक व रोगाणुरोधक होने से फेफड़ों की कोई भी बीमारी या श्वसनतंत्र में संक्रमण, स्वरतंत्र की बीमारी, श्वास की बीमारी जैसे अस्थमा के लिए वासा एक अतिमहत्वपूर्ण औषधि है। कफनिस्सारक व broncho dilator होने से काफी हर्बल कफनाशक दवाइयों में वासा का प्रयोग होता है।
- कान-नाक-गले के रोग : इसके अलावा सामान्य सर्दी जुकाम, साइनोसाइटिस, गले मे खराश, दर्द, जलन, टॉन्सिलाइटिस, अतिरिक्त गर्मी के कारण नाक से खून बहना, गले मे अल्सर आदि बीमारियों में वासा काफी उपयोगी होता है।
- कफ की शिकायत में ले वासा के फूलों का गुलकंद : आचार्य बालकृष्ण के अनुसार जिनको बार बार कफ या बलगम की शिकायत रहती हो, वे वासा के फूलों में बराबर मात्रा में मिश्री का पॉवडर मिलाकर फूलों को हाथ से मसले, फिर किसी कांच की बरनी में भरकर धूप में रखे। कुछ ही दिनों में गुलकंद तैयार हो जाएगा। इसका 1 – 1 चम्मच सुबह शाम सेवन करे। कफरोगों में आराम मिलेगा। सारा बलगम निकल जायेगा। वासा पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन पीने से भी कफ व इससे सम्बंधित व्याधियों में आराम मिलेगा।
- अस्थमा में असरकारक वासा : वासा में सूजन कम करनेवाले गुण होते है, अतः यह वायुमार्ग व फेफड़ों की सूजन कम करता है। वासा में मौजूद vasinin घटक में bronchodilator के साथ mucolytic गुण होने के कारण कफ को पतला कर आसानी से बाहर निकालता है। सांस लेने की प्रक्रिया को आसान बनाता है। गले मे हो रही घरघराहट को कम करता है। इसके लिए 1 चम्मच वासा रस, आधा चम्मच अदरक रस, आधा चम्मच तुलसी का रस, 1 चम्मच शहद मिलाकर लेने से फायदा होगा। वासा और अदरक का रस 5 – 5 gm मिलाकर 3 – 3 घण्टे से पिलाये। ऐसा करीब 40 दिन करनेपर दमा दूर हो जाता है।
- सामान्य सर्दी में उपयोगी : सामान्य सर्दी खाँसी में तो वासा काफी असरकारक होता है। वासा के पत्तो का स्वरस 1 चम्मच शहद के साथ अथवा वासा के 4 से 5 पत्तों को पानी मे उबालकर छानकर शहद मिलाकर पीने से सर्दी खासी में राहत मिलती हैं। साथ ही जब नाक से निकलने वाला मवाद पीला और गाढ़ा हो तब भी यह काफी फायदा करता है। इस दौरान नियमित वासावलेह लेने से बार बार हो रही सर्दी की शिकायत दूर होती है।
- साइनोसाइटिस में करे लाभ : अपने एंटीसेप्टिक गुण के कारण वासा bronchial tubes ( श्वसन नलिकाओं ) की सूजन कम करता है। साइनस में जमा हुआ कफ बाहर निकालता है। साथ ही, sinusitis की वजह से होनेवाले सिरदर्द, छाती में दर्द, श्वास, bronchitis आदि लक्षणों को कम करता है। जिनको हमेशा sinus की समस्या रहती है, वे वासा की ताज़ी पत्तियों का रस निकालकर 3-4 बूंद नाक में डाले।
- छोटे बच्चों की खासी मे भी काफी गुणकारी वासा : अगर कोई छोटा बच्चा और उसे खांसी की काफी परेशानी हो रही हो, तो वासा के दो से तीन पत्तों को लेकर अच्छे से धो कर कूटकर उसका रस निकालने व उसमें थोड़ा शहद और अदरक का रस मिलाकर दिन में दो तीन बार पिलाने या चटाने से भी खांसी में काफी राहत मिलेगी।
- गले के अल्सर को करे ठीक : अध्ययन बताते है कि वासा में सूजन कम करने के साथ अल्सर रोधक गुण भी होते है। pain killers के कारण होनेवाले अल्सर में वसा की पत्तियों से काफी लाभ होता है। इसके अलावा पेट के अल्सर जैसे peptic या duodenal ulcer में भी वासा के सेवन से मदत मिलती है। चिकित्सक के परामर्श से इसका सेवन करे।
- TB में वासा का करे उपयोग : TB के मरीज को खाँसी की शिकायत हो रही हो , तो एलोपैथी दवाई के साथ वासा का syr या काढ़ा देने से काफी फायदा होता है। प्रतिदिन वासा के पत्तो का रस अदरक के रस में मिलाकर दिन में 3 बार ले। वासा के सफेद फूलों को छाया में सुखाकर , पाउडर बनाकर मिश्री या शहद के साथ मिलाकर प्रतिदिन करीब 6 महीने तक सुबह शाम 1 ग्लास दूध के साथ ले।
- धातुरोग में वासा के फूल है प्रभावकारी : जिनको धातुरोग या प्रमेह की शिकायत है, वे अडूलसा के पत्तों में मिश्री मिलाकर सुबह शाम एक – एक चम्मच ले या वासा का गुलकंद भी ले सकते है। इससे धातुरोग में आराम मिलेगा व प्रमेह की शिकायत भी दूर होगी।
- किडनी के मरीजों के लिए उत्तम औषधि वासा : किडनी के मरीज वासा पंचांग ( जड़, तना, पत्तियां, पुष्प, फल ) के काढ़े को बनाकर प्रतिदिन पीते है, तो किडनी रोग में काफी फायदा होता है।
- मासिक धर्म में अडूलसा का प्रयोग : जिन महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान काफी रक्तस्त्राव होता है, वे वासा के पत्तों का रस निकालकर 4 – 5 चम्मच रस में थोड़ी मिश्री या गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिये व खाने में हल्का सुपाच्य आहार लें। इससे रक्तप्रदर व श्वेतप्रदर के समस्या में आराम मिलेगा।
- वासा के पत्तों से होती है एसिडिटी दूर : अपचन, पेट मे जलन, एसिडिटी, पेट मे ऐंठन को वासा के प्रयोग से कम किया जा सकता है। वासा पाउडर में मुलेठी पाउडर व आंवला पाउडर मिलाकर प्रतिदिन लेने से पेट व आंत्र से जुड़ी समस्याएं समाप्त होती है।
- लिवर की समस्याओं में भी उपयोगी वासा : भोजन के पश्चात वासा के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर लेने से लिवर के लिए अच्छा रहता है।
- यूरिक एसिड का बढ़ना हो कम : वासा को दूसरी जड़ीबूटियों के साथ मिलाकर चिकित्सक के परामर्श से ले , तो यह गठियाँ में बढ़्नेवाले यूरिक एसिड को कम करता है, जिससे गठियाँ से होनेवाला दर्द कम होता है।
- मुँह के रोग करे दूर : अडूलसा के लकड़ी से नियमित रूप से दातन करने से दांत व मुँह के अनेक रोग दूर होते है। अडूलसा के पत्तों को पानी मे उबालकर इसके काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ो की तकलीफ कम होती है।
- सिरदर्द करे दूर : चाय की पत्तियों की तरह अडूलसा की पत्तियों को पानी मे उबालकर चीनी की जगह चुटकी भर सेंधा नमक मिलाकर छान लें। फिर गर्म गर्म चाय की तरह दिन में 2 – 3 बार ले। दर्द में आराम मिलेगा।
- वासा के कुछ अन्य फायदे
- वसापत्र स्वरस को शहद के साथ उल्टी, खाँसी व रक्तपित्त में देना चाहिये।
- जोड़ो के दर्द में वासा के पत्तो को गर्म करके दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है।
- अडूलसा के पत्तों को पान के पत्तो की तरह चबाकर उसका रस चूसने से मुँह के छाले ठीक होते है।
- अडूलसा के 50 ml छाले में थोड़ा गेरू व 2 चम्मच शहद मिलाकर मुँह में कुछ देर रखने से मुंह के छाले, नाड़ीव्रण ठीक होते है।
- अडूलसा के ताजे पत्तों को सुखाकर, उसमे काले धतूरे के सूखे पत्तों को मिलाकर चूर्ण बनाकर धूम्रपान करने से दमा में काफी लाभ होता है।
- वासा के पत्तो के रस में, तालीसपत्र चूर्ण व शहद मिलाकर खाने से स्वरभंग ( गला बैठना) दूर होता है।
- अडूलसा के पत्तों को पीसकर इसका गाढ़ा लेप फोड़े- फुन्सियों के प्रारंभिक अवस्था मे बांधने पर उनका असर कम होता है और अगर वे पककर फुट जाते है तो इस लेप में थोड़ी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव तीव्रता से भर जाता है।
- अडूलसा के फलों को छाया में सुखाकर महीन पीसकर10 gm चूर्ण बनाये, इसमें थोड़ा गुड़ मिलाए। इसे 4 हिस्सो में बांटकर जब भी सिरदर्द होने लगे 1 भाग या 1 गोली खिलादें। तुरन्त राहत मिलेगी।
- शरीर की दुर्गंध मिटाने के लिए वासा के रस में शंखचूर्ण मिलाकर शरीर पर लेप एवं मर्दन करना चाहिए।
- अडूलसा के मूलों का काढ़ा पिलाने से बुखार में राहत मिलती है।
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वासा के दुष्परिणाम Adulsa side effects in Hindi
प्राकृतिक व उचित मात्रा में सेवन करने पर वासा के कोई दुष्परिणाम नही होते है। गर्भवती महिलाएं भी चिकित्सक के परामर्श से योग्य मात्रा में, सीमित अवधि तक अदरक के साथ इसका प्रयोग कर सकती है, जिससे उन्हें जी मचलाना, उल्टी या एसिडिटी जैसी समस्याओं से राहत मिल सके।
तो यह है आयुर्वेदिक दिव्य औषधि वासा की जानकारी, जो मनुष्य को भयंकर कष्ट व पीड़ा से छुटकारा दिलाती है। इसके बारे में आयुर्वेद में कहा गया है, ” रोगों की होगी निवृत्ति, जीने की आशा होगी बलवती।। ” तो जीने के लिए, जीवन निर्वहन के लिए, रोगों से निवृत्ति के लिए वासा का प्रयोग जरूर करे।
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मेरा नाम है डॉ पारितोष त्रिवेदी और मै सिलवासा, दादरा नगर हवेली से हूँ । मैं 2008 से मेडिकल प्रैक्टिस कर रहा हु और 2013 से इस वेबसाईट पर और हमारे हिन्दी Youtube चैनल पर स्वास्थ्य से जुड़ी हर जानकारी सरल हिन्दी भाषा मे लिख रहा हूँ ।