योग के अभ्यासकों में मुद्रा (Mudra) विज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुछ योग विशेषज्ञ मुद्रा को ‘हस्त योगा’ भी कहते हैं। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए विभिन्न योगासन और प्राणायाम के साथ इन मुद्राओं का अभ्यास करना भी जरूरी हैं। योग मुद्रा का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभ होता हैं।
योग में कई तरह की मुद्राओं का वर्णन किया है। आज हम यहाँ पर केवल साधारण मुद्रा की चर्चा करने जा रहे हैं। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पञ्च तत्वों से बना हुआ हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन तत्वों को नियंत्रण में रखना जरुरी हैं। योग में मुद्रा विज्ञान द्वारा हम इन पंचतत्वों को नियंत्रण में रख सकते हैं। इन तत्वों को हाथ की उंगलियों व अंगूठे के द्वारा नियंत्रण में रखा जा सकता हैं।
शरीर के मुलभुत पञ्च तत्व और हाथ का संबंध निचे दिया गया हैं :
- अंगूठा (Thumb) – अग्नि तत्व
- तर्जनी (Index finger) – वायु तत्व
- मध्यमा (Middle Finger) – आकाश तत्व
- अनामिका (Ring Finger) – जल तत्व
- कनिष्का (Little Finger) – पृथ्वी तत्व
पृथ्वी मुद्रा कैसे करे? (Pruthvi Mudra in Hindi)
छोटी उंगली को मोड़कर उसके अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से गोलाकार बनाते हुए लगाने पर प्रथ्वी मुद्रा बनती हैं।
पृथ्वी मुद्रा के क्या फायदे हैं ?
पृथ्वी मुद्रा के फायदे :
1. इस मुद्रा से पृथ्वी तत्व मजबूत होता है और शारीरिक दुबलापन दूर होता हैं।
2. अधिक लाभ लेने के लिए दोनों हाथों से पद्मासन या सुखासन में बैठ कर करना चाहिए।
3. सयंम और सहनशीलता को बढ़ती हैं।
4. चेहरा तेजस्वी बनता है और त्वचा निखरती हैं।
अग्नि मुद्रा कैसे करे ?
सबसे पहले अनामिका उंगली को मोड़कर, अनामिका उंगली के अग्रभाग से अंगूठे के मूल प्रदेश को स्पर्श करना हैं। अब अंगूठे से अनामिका उंगली को हल्के से दबाना हैं। इस तरह अग्नि / सूर्य मुद्रा बनती हैं। इस मुद्रा का रोजाना 5 से लेकर 15 मिनिट तक अभ्यास करना चाहिए।
अग्नि मुद्रा के क्या फायदे हैं ?
अग्नि मुद्रा के फायदे :
1. मोटापे से पीड़ित व्यक्तिओ के लिए वजन कम करने हेतु उपयोगी मुद्रा हैं।
2. बढे हुए Cholesterol को कम कर नियंत्रित रखने के लिए उपयोगी मुद्रा हैं।
3. इस मुद्रा से पाचन प्रणाली ठीक होती है।
4. भय, शोक और तनाव दूर होते हैं।
5. अगर आपको एसिडिटी / अम्लपित्त की तकलीफ है तो यह मुद्रा न करे।
जल मुद्रा कैसे करे ?
अनामिका उंगली को मोड़कर, अनामिका उंगली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से गोलाकार बनाते हुए लगाने पर जल मुद्रा बनती हैं।
जल मुद्रा के क्या फायदे हैं ?
जल मुद्रा से जल तत्व मजबूत बनता है और जल तत्व की कमी से होने वाले रोग दूर होते हैं।
1. पेशाब संबंधी रोग में लाभ होता हैं।
2. प्यास ठीक से लगती हैं।
3. जिन लोगों की त्वचा शुष्क या रूखी / dry रहती है उनके लिए उपयोगी मुद्रा हैं।
वायु मुद्रा कैसे करे ?
सबसे पहले तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूल (Base) प्रदेश पर लगाना हैं।
इसके बाद मुड़ी हुई तर्जनी उंगली को अंगूठे से हलके से दबाकर रखना हैं। इस तरह से वायु मुद्रा बनती हैं।
वायु मुद्रा के क्या फायदे हैं ?
वायु मुद्रा के फायदे :
1. वायु तत्व नियंत्रण में रहता हैं।
2. वायु तत्व से होने वाले रोग जैसे की गठिया, गैस, डकार आना, हिचकी, उलटी, Paralysis, Spondylitis इत्यादि विकार में लाभ होता हैं।
प्राणवायु मुद्रा कैसे करे ?
अनामिका और कनिष्का उंगलियों को मोड़कर इन दोनों उंगलियों के अग्र भाग से अंगूठे के अग्रभाग को छूने से प्राणवायु मुद्रा बनती हैं।
प्राणवायु मुद्रा के क्या फायदे हैं ?
प्राणवायु मुद्रा के फायदे :
1. इस मुद्रा से प्राणवायु नियंत्रण में रहता हैं।
2. नेत्र दोष दूर होते हैं।
3. शरीर की रोग प्रतिकार शक्ति / Immunity बढ़ती हैं।
अपान वायु मुद्रा कैसे करे ?
सबसे पहले तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूल प्रदेश में लगाना हैं। इसके बाद अनामिका और मध्यमा इन दोनों उंगलियों को गोलाकार मोड़कर इनके अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग को छूना हैं। कनिष्का उंगली को सीधा रखना हैं। इस तरह अपान वायु मुद्रा बनती हैं।
अपान वायु मुद्रा के क्या फायदे हैं ?
अपान वायु मुद्रा के फायदे :
1. इस मुद्रा से अपान वायु नियंत्रित रहती हैं।
2. अपान वायु से होनेवाले रोग जैसे की ह्रदय रोग, बवासीर, कब्ज इत्यादि में उपयोगी मुद्रा हैं।
शून्य मुद्रा कैसे करे ?
मध्यमा उंगली को मोड़कर उसके अग्रभाग से अंगूठे के मूल प्रदेश को स्पर्श करना हैं। इसके बाद अंगूठे से मध्यमा उंगली को हलके से दबाना हैं। अन्य उंगलियों को सीधा रखना हैं। इस तरह शुन्य मुद्रा बनती हैं।
शून्य मुद्रा के फायदे क्या हैं ?
शून्य मुद्रा के फायदे :
1. इस मुद्रा से आकाश तत्व नियंत्रण में रहता हैं।
2. यह मुद्रा कान में दर्द और बहरेपन में उपयोगी हैं।
प्राचीन समय से योगी मनुष्य, ध्यान और समाधी की अवस्था को प्राप्त करने के लिए और कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए योग और प्राणायाम के साथ योग मुद्रा का अभ्यास करते आ रहे हैं। सामान्य व्यक्ति भी अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए इन क्रियाओं को नियमित अभ्यास कर सकता हैं।
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मेरा नाम है डॉ पारितोष त्रिवेदी और मै सिलवासा, दादरा नगर हवेली से हूँ । मैं 2008 से मेडिकल प्रैक्टिस कर रहा हु और 2013 से इस वेबसाईट पर और हमारे हिन्दी Youtube चैनल पर स्वास्थ्य से जुड़ी हर जानकारी सरल हिन्दी भाषा मे लिख रहा हूँ ।
dikhai gai yog mudraia bahut upyogi he ,in ka abhayas roj karna chaiya
सही कहा आपने दलबीर जी !
achi jankari
Nice and useful information regarding yoga
Thanks