गर्भसंस्कार क्या है और कैसे किया जाता हैं ?

भारतीय परंपरा में 16 प्रमुख संस्कार बताए गए हैं, उसमें से गर्भ संस्कार यह एक महत्वपूर्ण संस्कार बताया गया है। माता के गर्भ में पल रहे बच्चे में भी संवेदनाएं होती है, बुद्धि होती है, ज्ञान ग्रहण करने की शक्ति होती है, यह हमें काफी प्राचीन समय से पता है। महाभारत में सुभद्रा के पेट में पल रहे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का सुभद्रा से लिया हुआ ज्ञान इसका उत्तम उदाहरण है। आजका मेडिकल साइंस भी यह मानता है कि गर्भस्थ शिशु भी किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है, वह सुन भी सकता है और ग्रहण भी कर सकता है। गर्भसंस्कार से हमे दिव्य संतान की प्राप्ति हो सकती है।

एक प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट का कहना है, की गर्भिणी अगर आधे घण्टे तक क्रोध या विलाप कर रही हो, तो गर्भस्थ शिशु का विकास कुछ देर के लिए रुक जाता है, जिसका असर बच्चे के बौद्धिक क्षमता पर भी होता है।

लेकिन आज के आधुनिक युग में भी गर्भ संस्कार में इतनी क्षमता है क्या ? वह इतना महत्वपूर्ण है क्या ? गर्भ संस्कार आखिर होता क्या है ? क्या इसमें गर्भावस्था के सारे समय में केवल मंत्रोच्चार सुनना होता है ? गर्भ संस्कार से जन्म लेने वाला बच्चा अर्थात हमारी भावी पीढ़ी सुसंस्कृत, मजबूत, होशियार हो सकती है क्या ? आदि कई तरह के सवाल कई पाठकों के मन में आते हैं और वह हमें इस बारे में पूछते रहते हैं। तो आज हम गर्भसंस्कार इस विषय पर सामान्य व्यक्ति समझ सके ऐसे सरल शब्दों में इसकी जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं।

गर्भसंस्कार क्या है और इसके लाभ क्या है इसकी जानकारी नीचे दी गयी हैं :

 

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गर्भसंस्कार क्या है और कैसे किया जाता हैं ?

जैन धर्म में गर्भस्थ भगवान महावीर के गर्भस्थ जीवन के बारे में आचार्य भद्रबाहू स्वामीजी ने कल्पसूत्र नामक ग्रंथ में वर्णन किया है। अपने हलन चलन से माता को वेदना हो रही है, ऐसा जानकर भगवान महावीर ने गर्भावस्था में कुछ देर के लिए हिलना बन्द कर दिया था। अर्थात गर्भ में सम्वेदना भी होती है।
पौराणिक कथाओं में भक्त प्रह्लाद जब गर्भ में थे तब उनकी मां को घर से निकाल दिया गया था। उस समय देवर्षि नारद ने उन्हें अपने आश्रम में शरण दी। वहां नारायण-नारायण का अखंड जाप चल रहा था। स्वामी विवेकानंद ने तो यहां तक कहा है, की ‘आर्य’ संतानें वे ही हैं, जो माता-पिता द्वारा भगवान से की गई निर्मल प्रार्थना के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। वे ही परिवार और समाज का हितसाधन कर सकती है। कई बार सोनोग्राफी के दौरान यह देखने मे आता है, की माता को सुई चुभो दी जाए, तो गर्भस्थ शिशु भी तड़प उठता है।

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गर्भसंस्कार क्या हैं ?

आयुर्वेद में संस्कार की परिभाषा :

” संस्कारो ही विशेष गुणान्तरधानं इति उच्यते। “



अर्थात हम किसी भी चीज पर संस्कार करते हैं, तो उसके गुण हम बदल सकते हैं और उसमें मौजूद दोषों को निकाल सकते हैं। जिस तरह हम किसी पदार्थ, वनस्पति या दवाई पर संस्कार करते हैं, उसी प्रकार हम माता के गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी संस्कार कर सकते हैं। गर्भ संस्कार से हम गुणों की वृद्धि, दोषों को निकालने के साथ अनुवांशिक दोषों को भी कम कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, दही हृदय के लिए उतना अच्छा नही होता पर दही मन्थने से बनी हुई छाछ हृदय के लिए अच्छी होती है क्योंकि संस्कार से उसके गुण बदल जाते है।

आयुर्वेद में गर्भधारणा होने के बाद गर्भ संस्कार से होने वाले फायदों से भी अधिक फायदे गर्भधारण होने के पूर्व गर्भ संस्कार करने से होते हैं, ऐसा बताया है। गर्भसंस्कार को आसानी से समझाना हो, तो हम यह कह सकते कि भावी, स्वस्थ व बुद्धिमान संतान के लिए पालन की जानेवाली सुसंस्कारयुक्त जीवनशैली है। गर्भ के अवयव अच्छे क्वालिटी के हो, इसके लिए किए जानेवाले प्रयास अर्थात संस्कार मतलब ही गर्भसंस्कार।

जिसतरह कोई बिल्डिंग बनने के पहले, उसका पाया ( base ) मजबूत हो तो वह बिल्डिंग भी मजबूत और टिकाऊ होती है, उसीतरह गर्भवती महिला ने गर्भावस्था में किया हुआ आहार, विहार, आचरण, अच्छी सोच आदि का सकारात्मक परिणाम ( positive effect ) उस बच्चे में दिखकर आता है। क्योंकि माता का एक-एक क्षण व बच्चे का एक-एक कण एक-दूसरे से जुड़ा है।

शादी के बाद जब पति पत्नी बच्चे की इच्छा रखते हैं तभी उन्होंने आयुर्वेदिक वैद्य / डॉक्टर के पास जाकर पंचकर्म, दवाइयां आदि से स्त्री बीज व पुरुष बीज की शुद्धि करनी चाहिए, ताकि वह एक स्वस्थ, ज्ञानी, संस्कारित बालक को जन्म दे सके। लेकिन अगर किसी कारणवश हम पहले शुद्धि ना कर पाए तो गर्भधारण के बाद भी हम गर्भ संस्कार ले सकते हैं। सिर्फ कोशिश यह रहेगी जितनी जल्दी हो शुरू करना चाहिए और उसका पालन अच्छे से करना चाहिए।

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आयुर्वेद में ऐसा माना गया है कि बच्चे के जो मृदु / कोमल अवयव होते हैं जैसे हृदय, यकृत, किडनी आदि माता से तैयार होते हैं और कठिन अवयव जैसे हड्डियां, बाल, दाँत आदि पिता के द्वारा तैयार होते हैं। गर्भ जब तैयार होता है उसमें कुछ भाग मातृज, कुछ पितुज, कुछ रसज, सात्म्यज, आत्म्यज रहते हैं। इसकी गहराई में जानकारी आयुर्वेद में दी गई है। ऐसे में कुछ अनुवांशिक दोष रहते हैं तो, वह गर्भ धारण के पहले बीज शुद्धि करने से काफी कम हो जाते हैं।

Prevention is better than cure ऐसा जो कहा जाता है, बीजसँस्कार करने से उसका काफी लाभ होता है। कई बार कहा जाता है, कि कोई अनुवांशिक बीमारी सात पीढ़ियों तक चलती है, वह गर्भ संस्कार से दो तीन पीढ़ियों में ही निकल सकती है, इतनी इसमें शक्ति होती है।

गर्भसंस्कार कैसे किया जाता हैं ?

गर्भ संस्कार करने की पहले हो सके तो पंचकर्म कराकर शरीर की शुद्धि अवश्य कर लें, क्योंकि आजकल लोगों की लाइफ स्टाइल, खाने-पीने की आदतें, समय, बाहर का खाना, नींद आदि में काफी अप्राकृतिक बदलाव आए हैं, जिससे हमारा शरीर गंदगी और बीमारी का घर बन गया है। जो सिर्फ दवाइयों से ठीक से साफ नहीं होगा। उसे पंचकर्म का सहारा लेना काफी जरूरी होता है।

अगर किसी की शादी देरी से होती है जो कि अप्राकृतिक है तो उसे गर्भसंस्कार कराना और भी जरूरी हो जाता है ताकि वह बच्चे को जन्मजात विकृति (Congenital Anamoly) से बचा सके। क्योंकि आजकल ज्यादा उम्र में शादियाँ होने से प्रेग्नेंसी का सही समय चला जाता है, जिससे कई जन्मजात व्यंग बच्चे में आते है। इसलिए गर्भसंस्कार और भी जरूरी हो जाता हैं। इसके लिए मुख्य पंचकर्म बस्ती होता है। उसके बाद गर्भसंस्कार कराए।

  • अपने आहार में गाय के दूध और घी का समावेश जरूर करे।
  • गर्भावस्था के दौरान अच्छी किताबे पढ़े, अच्छे वीडियो देखें जैसे आध्यात्मिक, motivational आदि।
  • सकारात्मक सोच रखे। सात्विक आहार लें। मन मे सात्विक भाव लाये। ध्यान ( मैडिटेशन ) ये भी सब गर्भसंस्कार का एक हिस्सा ही है।
  • जिस तरह एक अच्छी फसल आने के लिए ऋतु, क्षेत्र अर्थात जमीन, अम्बु अर्थात पानी और बीज चारों बाते अच्छि होना जरूरी है उसी प्रकार अच्छे बालक के जन्म के लिए ऋतु, क्षेत्र अर्थात गर्भाशय, अम्बु अर्थात गर्भ को मिलनेवाला आहार और स्त्री एवं पुरुष बीज कैसे है इनपर निर्भर करता है।
  • हर महीने में शरीर मे अलग अलग अवयवों की निर्मिति होती है। उसी के आधार पर हर महीने अलग अलग गर्भसंस्कार किया जाता है।

गर्भसंस्कार मुख्यतः 3 स्टेज में होता है :

1. गर्भधारण के पहले के संस्कार
इसमें पँचकर्मादि से बीजशुद्धि, पति पत्नी का आहार – विहार, गर्भाधान के लिए सही समय, ऋतु, आदि का विचार किया जाता है।

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2. गर्भावस्था में किये जानेवाले संस्कार
इसमें गर्भवती महिला में हर महीने होनेवाली गर्भवृद्धि के आधार पर लिया जानेवाला आहार, विहार, आचरण, प्राणायाम, गर्भसंवाद, गर्भवृद्धि व पोषण के लिए किए जानेवाले प्रयास आदि का अंतर्भाव होता है।

  • गर्भिणी माता को प्रथम तीन महीने में बच्चे का शरीर सुडौल व निरोगी हो, इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। तीसरे से छठे महीने में बच्चे की उत्कृष्ट मानसिकता के लिए प्रयत्न करना चाहिए। छठे से नौंवे महीने में उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
  • गर्भावस्था में हमेशा अच्छे विचारों का चिंतन करे। गर्भ के साथ स्वस्थ विचारों का संवाद करे। इस अवस्था में माता जो भी देखती है, सीखती हे, महसूस करती हे, इच्छा करती है, कल्पना करती है, उसके अनुरूप ही उसके बच्चे के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
  • गर्भवती स्त्री को जिस देवता, संत अथवा वीरपुरुष के गुण अपने शिशु में लाने की इच्छा हो, उनकी मूर्ति, छायाचित्र सामने रखकर उनका ध्यान करें। तत्पश्चात गर्भ के साथ सकारात्मक संवाद करे।
  • गर्भावस्था के दौरान माँ जितनी खुश रहती है, बच्चा भी उतना ही खुशमिजाज बनता है।

3. प्रसूति के बाद किये जानेवाले संस्कार
इसमें जन्मे हुए बालक पर संस्कार किये जाते है, जैसे सुवर्णप्राशन संस्कार आदि।

गर्भसंस्कार के फायदे

  1. शरीर के साथ मन के दोष निकालने के लिए गर्भसंस्कार काफी परिणामकारक है।
  2. गर्भसंस्कार से उत्तम वर्ण, अच्छी लम्बाई (Height) तो मिलती ही है साथ मे बच्चा बुद्धिमान बनता है।
  3. बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ाने, मधुमेह, कैंसर जैसी अनुवांशिक बीमारियों को कम करने के लिए गर्भसंस्कार काफी लाभदायक है।
  4. सुसंस्कारयुक्त दिव्य संतान की प्राप्ति गर्भसंस्कार से ही possible है।

गर्भसंस्कार क्यों जरूरी है ?हम सब जानते है, बच्चे ही राष्ट्र का भविष्य है। अगर हम बच्चों को संवारे, इनपर विशेष ध्यान दे, इन्हें सुसंस्कारयुक्त, बुद्धिमान बनाये तभी हमारे परिवार, समाज राष्ट्र का कल्याण हो सकेगा। एक सुसंस्कारी बच्चा ही अपने परिवार, समाज, राष्ट्र का नाम उज्वल तथा प्रकाशित कर सकता है, इसलिए गर्भसंस्कार आज की जरूरत है। इसका पालन हर गर्भवती महिला के करना चाहिए।

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