पवन = वायु, मुक्त = छुटकारा, आसन = शरीर की विशेष स्तिथि। अर्थात वायु से उतपन्न बाधकों से छुटकारा पाने के लिए योगाभ्यास। वातनियंत्रक नाम होने के पश्यात यह आसन वात , पित्त और कफ आदि त्रिदोषों को नियंत्रित करता है।
पवनमुक्तासन को तीन प्रमुख समूहों में विभक्त किया गया है।
- गठिया निरोधक
- वात निरोधक
- दृष्टि वर्धक
गठिया निरोधक अभ्यास को पुनः तीन भागों में विभाजित किया जाता है :
- पाद पवनमुक्तासन
- हस्त पवनमुक्तासन
- शिर पवनमुक्तासन
किसी भी योगासन करने के पहले यह सभी सूक्ष्म आसन करना जरुरी होता हैं। यह सूक्ष्म आसन कैसे करे यह जानकारी निचे दी गयी हैं :
किसी भी योग आसन करने से पहले कौन से सूक्ष्म व्यायाम करना चाहिए ? (Exercise to do before each Yoga in Hindi)
पादपवनमुक्तासन
योगाभ्यास के शुरूआत में भी 2 मिनट का शवासन करना चाहिए तनाव रहित शारीरिक व मानसिक स्थिति के लिए यह शिथिलीकरण आवश्यक है।
1 ) पादांगुलिनमन / पैरों की अंगुलियों को मोड़ना
पैरों की उंगलियां रखने का जोड़ हमारे ह्रदय से अति दूर शरीर के अंग है। उनकी रचनाओं में हमारे शरीर के तंत्रिका प्रणालियों का अंत होता है। इसी वजह से शरीर का पूर्ण भार इन छोटे से अंगों पर होता है। हमारे शरीर के खड़े होने की स्थिति में उंगलियों का कार्य नियुक्ति होता है। जब हम खड़े रहते हैं तो पकड़ के लिए उंगलियां अपने आप में थोड़ी सिकुड़ जाती है। इस कृति को हम सामान्यतः समझते नहीं मात्र पैर की किसी उंगली को आवाज होने पर जब हमें उसे भूमि पर नहीं रख सकते तब जंघाओं में दर्द निर्माण होता है। इससे ही इसके महत्व का अनुमान लगाया जा सकता है।
सूक्ष्म व्यायाम द्वारा हम शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में मजबूती ला सकते हैं।
प्रारंभिक स्तिथि
- सर्वप्रथम योगाभ्यास करने के लिए एक साफ-सुथरी दरी या योगा मैट बिछाकर अपने पैरों को शरीर के सामने सीधा फैलाकर कर बैठ जाए।
- हाथों को कूल्हों के पीछे तथा बाजू में रखे।
- उँगलियों की दिशा पीछे की ओर।
- अपने हाथों के सहारे थोड़ा पीछे की ओर झुकीये।
- हाथ सीधे रहने चाहिए , कोहनियों में मोड़ना नहीं है।
- दोनों पैरों को एक दूसरे से मिला ले।
- रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
- अपनी दृष्टि को पैरों की अंगुलियों पर रखते हुए उनके प्रति जागरूक होइए।
- अपने सम्पूर्ण शरीर को शिथिल रखे।
- श्वास लेते हुए केवल पैरो कीअंगुलियों को यथासंभव नीचे की ओर मोड़ना है और श्वास छोड़ते हुए शरीर की और ताने। यह प्रक्रिया करीब 10 बार कीजिए।
- ध्यान रखें पैर को उठाना नहीं है। कड़ा रखते हुए अभ्यास करना है।
- टखने को स्थिर रखे। केवल पैरों की उंगलियों में ही गद्यात्मकता हो।
- सर्वप्रथम दाएं पैर और फिर बाएं पैर के अंगुलियों पर पृथक अभ्यास करते हुए फिर दोनों पैर के अंगुलियों पर एक साथ अभ्यास करना चाहिए।
2 ) गुल्फ नमन / पैरों के टखने मोड़ना
गुल्फ़ का अर्थ होता है टखना। नमन अर्थात मोड़ना।
- अभ्यास एक की प्रारंभिक स्थिति में बैठते हुए टखनों को जोड़ों से सामने व नीचे की ओर झुकाते हुए दोनों पंजों को जितना संभव हो उतना मोड़ीए।
- टखनों के जोड़ से पैरों का झुकना अधिकतम हो।
- सामने की ओर झुकते हुए श्वास लेना है और श्वास छोड़ते हुए सीधा कीजिए। यह क्रिया भी करीब 10 बार दोहराइए।
- पृथक पैर के लिए अभ्यास करने के पश्चात दोनों पैर के लिए एक साथ करना हैं।
3 ) गुल्फचक्र / टखने को व्रुत्ताकार घुमाना
- अभ्यास की प्रारंभिक स्तिथि में बैठे हुए दोनों पैरों के बीच करीब 9 इंच का फासला रखिए।
- पैरों को टखनों के जोड़ों में वृत्ताकार घुमाना है।
- एड़ी को जमीन पर रखते हुए दाहिने पंजे को दाई और घुमाते हुए सामने लाकर फिर बाई ओर से व्रुत्ताकार घुमा कर वापस सीधा रखें। 10 बार दोहराइए। पुनः विपरीत दिशा में घूमाइये।
- यही अभ्यास बाए पंजे से भी कीजिए। फिर दोनों पैरों को एक साथ घूमाइए।
- पूरक करने के उपरांत अंतः कुंभक के साथ वृत्ताकार घुमाने की कृति पूर्ण होने पर रेचक का अभ्यास करें।
4) गुल्फ़ घूर्णन / टखने को उसकी धुरी पर घुमाना
- यह एक तरह से गुल्फ़ चक्र का विस्तारित रुप है।
- अभ्यास की मूल स्थिति में बैठिए। पैरों को सामने की ओर तान दें।
- सर्वप्रथम दाहिने टखने को बाई जांघ पर रखिए। बाए हाथ की सहायता से दाहिने पंजे को पहले दाई ओर से फिर बाई और वृत्ताकार घुमाइए। विपरीत दिशा में भी घूमाइए।
- यह प्रक्रिया 10 बार करें।
- इसी प्रकार बाए पंजे से भी कीजिए।
- पूरक करने के उपरांत अंतः कुंभक के साथ इस कृति को पूर्ण किया जाता है।
- पश्चात रेचक करके शिथिलता का अनुभव करें।
5) जानुफलक आकर्षण
घुटनों का जोड़ अत्यंत महत्वपूर्ण जोड़ है। आज विश्व के कई लोग घुटनों के जोड़ों के दर्द से त्रस्त है। अत्यंत जटिल रचना का यह जोड़ हमारी कई गतिविधियों को निर्देशित करता है, जैसे चलना, बैठना, उकडू बैठना, कुर्सी पर बैठना, छलांग लगाना, दौड़ना आदि समस्त क्रियाओं में इस जोड़ की भूमिका अहम है। योगाभ्यास के दौरान आसनों की कई कुर्तियों का घुटनों पर प्रभाव पड़ता है घुटनों में कमजोरी या दर्द के कारण कई आसन हम नहीं कर पाते हैं। इसलिए हमें घुटनों का भी विशेष ख्याल रखना होता है।
जानू का अर्थ होता है घुटना और घुटने की कटोरियों को फलक कहते हैं तथा आकर्षण का अर्थ खींचना होता है।
- प्रारंभिक स्थिति को ग्रहण करें। पैरों को सामने की ओर तान दे।
- दोनों दोनों पैरों को एक दूसरे के नजदीक रखें। हाथों को कुल्लू के पास पीछे की ओर तथा बाजू में रखें।
- अब घुटनों को शरीर की तरफ आकर्षित करें। यह कृति प्रथमतः कठिन लगती है क्योंकि इस कृती में जाँघ के स्नायु पर नियंत्रण करना होता है।
- मात्र कुछ अवधि के बाद यह सहज संभव होता है। कटोरियों को आकर्षित करना , कुछ क्षण स्थिति बनाए रखना तथा बाद में उसे शिथिल करना चाहिए।
- पूरक के साथ आकर्षण करें तथा रेचक के साथ शिथिलीकरण करें। प्रारंभिक अवस्था में 10 बार से शुरू करके 50 तक या अपने सुविधानुसार बढ़ाये।
6) जानू नमन / घुटने को मोड़ना
आज की जीवन पद्धति में हम टेबल कुर्सियों का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि भोजन के समय भी हम इसी पद्धति को अपनाते है। जो अशास्त्रीय है। यही कारण है कि घुटनों का कार्य दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहा है। घुटनों को मोड़कर किया जाने वाली यह प्रक्रिया सहज होनी चाहिए परंतु अधिकतर लोगों में इस क्रिया को करने में कठिनाई पाई जाती है। इसलिए जानू नमन जैसे अभ्यास घुटनों को मोड़ने में आवश्यक माने जाते हैं।
- अभ्यास की मूल स्थिति में बैठिए।
- दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए जमीन से थोड़ा ऊपर उठाइए।
- दोनों हाथों को दाहिनी जाँघ के नीचे बांध लीजिए।
- अब सांस लेते हुए दाहिने पैर की एडी को बिना जमीन से स्पर्श किए बिना सीधा कीजिए।
- फिर सांस लेते हुए दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए एडी को दाहिने नितंब के पास लाइए, किन्तु एड़ी जमीन को ना छुए। फिर सीधा कीजिए।
- इस प्रकार 10 बार दोहराइए। इस अभ्यास को बाएं पैर से भी कीजिए।
- धड़ की ओर लाते हुए श्वास छोड़े और सामने की ओर सीधा करते हुए श्वास ले।
- आवृत्तियां – 10
7) द्विजानु नमन
- यह आसन भी जानू नमन की तरह है लेकिन इसमें एक साथ दोनों पैरों को घुटनों में मोड़ना और सीधा करना होता है।
- पैरों की एड़ियां घुटनों में पैर के सीधे होने के पश्चात भूमि से ऊपर अधर में रहेगी।
- यह प्रक्रिया थोड़ी कठिन है तथा इसको करने के लिए पर्याप्त संतुलन की भी आवश्यकता है।
- यह केवल घुटनों के लिए ही नहीं अपितु जंघा तथा निम्न उदर, नितंब आदि हिस्सों को प्रभावित करने वाला प्रखर अभ्यास है।
- श्वास की सजगता जानू नमन की तरह ही हो।
- आवृत्तिया – 10
8) जानुचक्र / घुटने को उसकी धुरी पर घुमाना
- मूल स्थिति में आइए।
- दोनों हाथों को बायीं जाँघ के नीचे बांधकर बाए पैर को मोड़ते हुए जमीन से थोड़ा ऊपर रखते हुए छाती के पास स्थिर पकड़कर बैठिये।
- अब पैर के घुटने के निचले भाग को वृत्ताकार घुमाइए। सांस लेने के बाद कुम्भक करते हुए 10 बार घूमाइये। और फिर सांस छोड़िए।
- यही क्रिया दाए पैर से भी कीजिए।
9) मेरुदण्ड को घुमाना
- सर्वप्रथम मूल स्थिति में आकर आराम से दोनों पैरों को एक दूसरे से जितना दूर फैला सके फैला लीजिए।
- पैर और हाथों को सीधे रखते हुए दाहिने हाथ को बाए पैर के अंगूठे के पास लाइए और संपूर्ण बाए हाथ को पीछे की और फैलाइए , इस तरह की दोनों हाथ एक सीध में हो।
- अपनी गर्दन को भी पीछे मोड़ते हुए बाए हाथ के अंगूठे पर दृष्टि रखिए।
- कुछ क्षण रुक कर फिर विपरीत दिशा में बढ़ते हुए बाए हाथ को दाहिने पैर के अंगूठे के पास जाकर दाहिने हाथ को पीछे की ओर फैलाइए एवं गर्दन को पीछे छोड़ते हुए दाहिने हाथ के अंगूठे पर दृष्टि रखें।
- यह एक आवृत्ति हुई। इस प्रकार 10 आवृत्तियां करे। आरंभ में धीरे धीरे करें। क्रमशः गति को बढ़ाया जा सकता है। श्वास की गति सामान्य रहे।
10) अर्धतितली
- प्रारंभिक सिटी में बैठे। पैरों को सामने की ओर तान दे। मेरुदंड सीधा रखें।
- दाए पैर को मोड़ीए और उसके तलवे को बाई जाँघ पर रखिए। दाहिने घुटने की दिशा सामने हो।
- बाए हाथ से दाहिने पंजे को पकड़िए और दाहिने हाथ से घुटने को पकड़े। मुड़े हुए दाएं पैर की मांसपेशियों को पूरा ढीला रखते हुए दाहिने घुटने को ऊपर नीचे कीजिए।
- ऊपर उठाते वक्त पूरक करते हुए छाती तक ले जाएं। नीचे ले जाते वक्त रेचक करते हुए जमीन तक ले आए।
- 10 बार दोहराइए। इस क्रिया को बाएं पैर से भी करें।
11) श्रोणिचक्र
- प्रारंभिक स्थिति में बैठ जाए। पैरों को सामने की ओर तान दें।
- दाहिने पैर को मोड़कर बाई जंघा पर रखे। बाए हाथ से दाहिने पैर को पकड़कर दाहिने हाथ से घुटने को पकड़ ले।
- घुटनों को शरीर से बाहर की ओर जंघा की ओर वृत्ताकार घुमाइए। व्रुत्त को बड़े से बड़ा बनाने का प्रयास करें।
- पर्याप्त आव्रुत्तियों के बाद घुटने को विपरीत दिशा में अंदर की ओर घुमाइए।
- यही क्रिया दूसरे पैर से भी करें।
- पूरक करने के उपरांत अंतः कुंभक में वृत्ताकार घुमाएं और फिर अंत में रेचक करें।
12) श्रोणि विस्तार
- प्रारंभिक स्थिति में बैठ जाए। पैरों को सामने की ओर तान दें।
- दाहिने पैर को घुटनों में मोड़ कर बाई जाँघ पर रखें।
- बाए हाथ से दाहिने पैर के पंजे पकड़ ले तथा दाहिने हाथ से घुटने को।
- अब धीरे-धीरे दाहिने हाथ से घुटने को शरीर के पीछे खींचने का प्रयास करें ताकि जंघा तथा श्रोणि प्रदेश का पूर्ण विस्तार हो।
- वैसे ही अब बाएं हाथ से पंजे को बाइ ओर खींचे। इस क्रिया में मुड़ा हुआ दाहिना घुटना बाए घुटने के ऊपर आए तथा बाई ओर से शरीर से बाहर रहे।
- जंघा विस्तार करते समय पूरक तथा आकर्षण करते हुए रेचक करें।
- नियमित अभ्यास अनुसार आवृत्तियां करें।
13) पूर्ण तितली
तितली के पंख की गति से समानता रखने वाली यह कृति हर योगाभ्यासी के लिए आवश्यक अभ्यास है। सामान्यतः दोनों घुटनों का भूमि स्पर्श होना ध्यान के आसनों में अनिवार्य रहता है किंतु हमारी जीवन जीने की पद्धति में यह कृति कठिन होती जा रही है। इसे आसान बनाने हेतु यह अभ्यास विशेष लाभदायी है।
- प्रारंभिक स्थिति में बैठे तथा पैरों को घुटनों में मोड़ कर जननांघ तक लाए।
- दोनों पैरों के तलवों का स्पर्श एक-दूसरे से होगा तथा एड़िया जननांघ को स्पर्श करेगी।
- दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में पिरोकर दोनों पैरों की उंगलियों के जोड़ को पकड़ लो। हाथ दोनों घुटनों के अंदर रहे।
- अब एक साथ दोनों घुटनों को ऊपर ले आए तथा धीरे धीरे नीचे ले जाएं , जहां घुटनों का बाहर का हिस्सा भूमि से स्पर्श करें।
- शुरुआत में यह आसन करने में कठिनाई होगी पर धीरे-धीरे अभ्यास से सरलता आती जाएगी क्रमशः संपूर्ण प्रक्रिया धीमे , मध्य तथा तीव्र गति से होगी , जैसे तितली के पंखों की गति होती है।
- गति को कम करते हुए भी तीव्र से मध्य की और और मध्य से धीमी क्रिया करनी होगी।
- घुटनों को ऊपर लाते हुए पूरक तथा नीचे लाते हुए रेचक करें।
टिप :-
- पूरक – सांस अंदर लेना
- रेचक – सांस छोड़ना
- अंतः कुम्भक – सांस लेने के पश्चात कुछ देर रोककर रखना।
- बहिः कुम्भक – सांस छोड़ने के बाद कुछ देर रोक कर रखना।
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मेरा नाम है डॉ पारितोष त्रिवेदी और मै सिलवासा, दादरा नगर हवेली से हूँ । मैं 2008 से मेडिकल प्रैक्टिस कर रहा हु और 2013 से इस वेबसाईट पर और हमारे हिन्दी Youtube चैनल पर स्वास्थ्य से जुड़ी हर जानकारी सरल हिन्दी भाषा मे लिख रहा हूँ ।